दोस्तों🌿⚘
आजकल की अनियमित जीवनशैली और अस्वस्थ खानपान के कारण दिल की बीमारियों की संभावना बहुत ज्यादा हो गई है।
दिल की बीमारियों की एक बड़ी वजह शरीर में कोलेस्ट्रॉल का बढ़ जाना है।
शरीर अच्छी तरह काम करे इसके लिए शरीर में एक निश्चित कोलेस्ट्रॉल लेवल होना चाहिए। कोलेस्ट्रॉल का लेवल बढ़ने से शरीर में कई तरह की परेशानियां शुरू हो जाती हैं
जैसे :- आर्टरी ब्लॉकेज, स्टोक्स, हार्ट अटैक और दिल की अन्य बीमारियां।
दरअसल कोलेस्ट्रॉल वैक्स या मोम जैसा एक ऐसा पदार्थ है जो लिवर बनाता है। ये हमारे शरीर में कोशिकाओं और हार्मोन्स के निर्माण के लिए जरूरी होता है।
इसके अलावा ये बाइल जूस बनाने में भी मदद करता है।
👏🏻आइये आपको बताते हैं👏🏻⚘
कोलेस्ट्रॉल के बारे में और ये भी कि कितना कोलेस्ट्रॉल होना आपके शरीर के लिए फायदेमंद है।
एलडीएल/HDL (लो डेन्सिटी लिपोप्रोटीन) और एचडीएल (हाई डेन्सिटी लिपोप्रोटीन)
कोलेस्ट्रॉल के दो प्रकार होते हैं।
एलडीएल को बैड कोलेस्ट्रॉल भी कहा जाता हैं।
एलडीएल कोलेस्ट्रॉल को लिवर से कोशिकाओं में ले जाता है।
अगर इसकी मात्रा अधिक हो जाए तो यह कोशिकाओं में हानिकारक रूप से इकट्ठा हो जाता है और धमनियों को संकरा बना देता है। इसके कारण ब्लड का सर्कुलेशन धीरे हो जाता है या रुक जाता है
जिससे शरीर के अंग प्रभावित होते हैं।
रक्त में एलडीएल औसतन 70 प्रतिशत होता है।
जोकि कोरोनरी हार्ट डिसीजेज और स्ट्रोक का सबसे बड़ा कारण बनता है।
HDL एचडीएल को अच्छा (GOOD) कोलेस्ट्रॉल माना जाता है।
गुड कोलेस्ट्रॉल कोरोनरी हार्ट डिसीज और स्ट्रोक को रोकता है।
एचडीएल, कोलेस्ट्रॉल को कोशिकाओं से वापस लिवर में ले जाता है।
लिवर में जाकर यह या तो टूट जाता है या फिर व्यर्थ पदार्थों के साथ शरीर के बाहर निकाल दिया जाता है।
20 साल की उम्र के बाद
कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ना शुरू हो जाता है।
यह स्तर 60 से 65 वर्ष की उम्र तक महिलाओं और पुरुषों में समान रूप से बढ़ता है।
मासिक धर्म शुरू होने से पहले महिलाओं में कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम रहता है।
मासिक धर्म के बाद पुरुषों की तुलना में महिलाओं में कोलेस्ट्रॉल का लेवल अधिक रहता है।
इसके अलावा कोलेस्ट्रॉल का बढ़ना अनुवांशिक भी हो सकता है।
देखा गया है कि अगर किसी परिवार के लोगों में अधिक कोलेस्ट्रॉल की शिकायत होती है तो अगली पीढ़ी में भी इसका लेवल बढ़ा हुआ मिलता है।
सामान्य परिस्थितियों में लिवर कोलेस्ट्रॉल के निर्माण और इसके इस्तेमाल के बीच संतुलन बनाए रखता है, लेकिन कभी-कभी यह संतुलन बिगड़ भी जाता है।
डायबिटीज, हाइपरटेंशन, किडनी डिजीज, लीवर डिजीज और हाइपर थाइरॉयडिज्म से पीड़ित लोगों में भी कोलेस्ट्रॉल का स्तर अधिक पाया जाता है।
महिलाओं में कोलेस्ट्रॉल का कम होना प्रीमैच्योर बेबी के जन्म का कारण बनता है।
रक्त में कोलेस्ट्रॉल का स्तर 3.6 मिलिमोल्स प्रति लिटर से 7.8 मिलिमोल्स प्रति लिटर के बीच में होता है।
6 मिलिमोल्स प्रति लिटर कोलेस्ट्रॉल को उच्च श्रेणी में रखा जाता है और ऐसा होने पर धमनियों से जुड़ी बीमारियों का जोखिम काफी बढ़ जाता है।
7.8 मिलिमोल्स प्रति लीटर से अधिक कोलेस्ट्रॉल बहुत उच्च कोलेस्ट्रॉल का स्तर कहा जाता है।
इसका उच्च स्तर हार्ट अटैक और स्ट्रोक की आशंका को कई गुना बढ़ा देता है।
कोलेस्ट्रॉल बैक्टीरिया द्वारा पैदा किए गए विषैले पदार्थों को सोखने के लिए स्पंज की तरह काम करता है।
साथ ही यह मस्तिष्क की कार्यप्रणाली के लिए भी बेहद जरूरी होता है।
जो लोग अल्जाइमर्स से पीड़ित होते हैं, उनके दिमाग में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा अधिक पाई जाती है।
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7. कम उम्र में आने वाले बुढ़ापे के कारण चेहरे पर पडने वाली झुर्रियां, स्त्रियों एवं पुरुषों में कांतिमय त्वचा का न रहना, दुर्बलता, शारीरिक कमजोरी एवं रोगों से लड़ने की क्षमता का कम होना।
8. प्रदूषण, सिगरेट, शराब, खानपान में प्रोसेस्ड् फूड, सब्जियों व खाद्य पदार्थ में पेस्टीसाइड्स व कैमीकल्स के इस्तेमाल से शरीर में जमा होने वाले विषाक्त पदार्थों के कारण होने वाले गंभीर रोग।
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